शुक्रवार, 5 मार्च 2010

25. नज़र




 

नज़र घुमा कर हमने देखा, नज़रों वाले नज़र न आए
हालातों से नज़र चुराते, देख नज़ारा हम घबराए

आडंबर करते आकर्षित, किन्तु नहीं हमने अपनाए
सीधे सादे जीवन को ना, कोई बुरी नज़र लग जाए

नज़रों के इस नज़राने पर, गर्व करें, क्यों हम इतराऐं
जिसने उनको नज़र किया है, नज़र झुका,अहसान जताऐं

नज़र-बंद हो गई सभी की, सत्य नहीं स्वीकार कर रहे
बिन सामान खुली दुकानें, सपनों का व्यापार कर रहे

अंतरमन के वातायन से, उपरवाला झांक रहा है
दुनियादारी के दलदल में, कितने डूबे आंक रहा है

नज़रें ढूंढ रही थी जिनको, बहुत सताया नज़र न आया
थक कर बैठे, आंखें मूंदी, अंतरमन में उसको पाया