सोमवार, 24 मई 2010

29. मौन

किसने, कब, क्यों, कहां,

कितने, कैसे और कौन?

उत्तर मौन


मेरे प्रश्न का उत्तर

सदा से रहा है मौन


अब यदि भविष्य में

कभी कोई बोल फूटा

और यह मौन टूटा

मेरे लिए निरर्थक होगा,

क्योंकि मेरे प्रश्नों के सार्थक उत्तर

केवल मौन ने दिए हैं

बुधवार, 19 मई 2010

28. मुस्कान


मृदु हास्य की रेखा

जो मुंह से कान तक खिंच जाती है

मुस्कान कहाती है

मंगलवार, 11 मई 2010

27. चश्मा

1

मनमें विचार आया ; कैसा ये श्रृँगार पाया,

भरे बाजार धर दी इज्जत ही ताक पर।

मेरी ही आँखों से मुझे ही दिखाने वाला,

चश्मा सवार सरे-आम मेरी नाक पर॥

2

आँखों के आगे खडी़ काँच की दीवार;

दृश्य करदे साफ़ जब झाँकें उस पार।

ऐ नकचढी़-ऐनक बता है क्या ख़ता मेरी;

खींचती है कान मेरे तूँ क्यों बारँबार॥

3

प्राप्त हुई रचनाओं का करके सँपादन;

सँपादक-गण करते हैं जैसे प्रकाशन।

वैसे ही काम को आसान बना देता है;

चश्मा दूरी से पहचान बना देता है॥

4

चक्षुमित्र चष्मे को देखा जब गौर से;

पाया इसकी चेहरे से दुश्मनी पुरानी है।

आँखों को कैद कर हावी रहता नाक पर,

पकड़े दोनो कान सरे-आम कमानी है॥

5

खुद की ही आँखों से खुद को दिखाए दुनिया,

नज़र बँद करदे ये अद्भुत करिश्मा।

आँखों के ऐब में, चेहरे के रौब में,

सदा सहायक होता है चश्मा॥

6

ऐंठता है कान;

    रहता नाक पे सवार।

                    फिरभी नहीं शिकायत;

                 ये कैसा लोकाचार॥