रविवार, 18 अप्रैल 2010

26. कर्म-योगी

चाह नहीं क्रोध की; व्यक्ति के विरोध की

दोष वृत्ति मानकर; इनकी प्रवृत्ति जानकर

काम क्रोध मोह यश; भाव से नहीं विवश

शक्ति को सहेज कर; देख ले उठा नज़र

परिस्थिति निहार कर; फिर से तूं विचार कर

वक्त की पुकार है; मुक्ति की गुहार है

कर्म-योगी कर्म से; रुख बदल दे धर्म से

उठ तूं उठ के वार कर; धर्म-युद्ध जान कर