मंगलवार, 24 नवंबर 2009

16. कर्म-साधना

फंस के चक्रव्यूह में,शब्द के समूह में

भाव कुलबुला रहे,वक्त को बुला रहे

कभी तो वक्त आएगा,अनर्थ से बचाएगा

अर्थ-पूर्ण अर्थ को,न्याय तो दिलाएगा

तर्क अर्थघात कर,भाव पर प्रहार कर

स्वार्थ-सिद्धि कर रहा,चैन सबका हर रहा

खुद को तूं बुलंद कर,मुक्त कर स्वतंत्र कर

कर्म-साधना प्रखर,धर्म भावना मुखर

लक्ष्य वेधना मगर,हौसले सहेज कर

श्रम का हाथ थामना,पूर्ण होगी कामना

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

15. जिन्दगी

देखता हूँ जब भी तुझको, गौर से मैं जिन्दगी

सोचता हूँ क्या समझ पाऊँगा तुझको जिन्दगी

क्या कहूं मैं साँस के आवागमन को जिन्दगी

या भरा हो जोश तब मानूं मैं उसको जिन्दगी

जोश में हरदम रहे चैतन्य-रूपा जिन्दगी

जो नशे में डोलती क्या ख़ाक है वो जिन्दगी

डरते-डरते जी रहे, किस काम की यह जिन्दगी

भय को जो भयभीत कर दे, है निडर वह जिन्दगी

जब से थामा हाथ मेरा, है तूं मेरी जिन्दगी

यह मेरा  सम्बंध है; बंधन नहीं है जिन्दगी

आज मेरा है ईरादा; और वादा जिन्दगी।

जिन्दगी भर साथ ना छोडूंगा तेरा जिन्दगी॥

बुधवार, 4 नवंबर 2009

14. घटना

'घटना' को तो घटना ही था, जीवन घटनाओं का क्रम है।

कोई इसको सत्य मानता, कोई कहता केवल भ्रम है॥

जितने चिंतक उतनी बातें, अलग-अलग से दृष्टिकोण हैं।

एक कहे जीवन को मस्ती, कहे दूसरा चिंतन स्थल है॥

जैसे– जैसे उम्र बढ़ रही, जीवन घटता ही जाता है।

जीवन की इन घटनाओं का,
                                       दिन घटने से क्या नाता है ?