चाह नहीं क्रोध की; व्यक्ति के विरोध की
दोष वृत्ति मानकर; इनकी प्रवृत्ति जानकर
काम क्रोध मोह यश; भाव से नहीं विवश
शक्ति को सहेज कर; देख ले उठा नज़र
परिस्थिति निहार कर; फिर से तूं विचार कर
वक्त की पुकार है; मुक्ति की गुहार है
कर्म-योगी कर्म से; रुख बदल दे धर्म से
उठ तूं उठ के वार कर; धर्म-युद्ध जान कर