रात-दिन और शाम-सुबह, वक्त के ही नाम हैं
दिन-महीने साल-सदियां, वक्त के ही धाम हैं
वक्त ने बेवक्त आ कर, जब कभी मांगा हिसाब
देखने वालों ने माना वक्त ही को तब खराब
वक्त ने दे कर चुनौती, जब कभी उकसा दिया
व्यक्ति से व्यक्तित्व बन कर, वक्त पर वो छा गया
काम से सबको लगाना, वक्त का ही काम था
काम में मिलना सफलता, वक्त का ईनाम था
वक्त ने उँचा उठाया, वक्त ने नीचा दिखाया
वक्त ने ही डोर खीँची, वक्त ने करतब कराया
वक्त मिलता है सभी को, काम करने केलिए
कर्म से पाकर सफलता, नाम करने के लिए
वक्त ने चेतावनी दी, नासमझ समझा नहीँ
मौन ही रहना उचित था, मूर्ख चुप रहता नहीँ
वक्त ने अभिव्यक्त कर दी, मन मेँ जो भी बात थी
बोझ हलका हो गया, यह इक नई शुरुवात थी
वक्त ने आकर समय से, खोल डाली ग्रँथियाँ
धुल गया जब मैल मन का, मिट गई सब भ्राँतियाँ
वक्त से जब वक्त माँगा हँस के आगे बढ़ गया
चैन के दो-चार लम्होँ, की व्यवस्था कर गया
वक्त वक्ता का गलत था, भाव मेँ वो बह गया
जो कभी कहना नहीँ था, जोश मेँ वो कह गया
झूठ ने जब भी बढा़या, हर कदम उस पर डिगा
वक्त की अद्भुत कसौटी, सत्य ही उस पर टिका
काल के विकराल हाथोँ, जीवन सुख सब हर गए
वक्त ने मरहम लगा दी, घाव सारे भर गए
मेहरबानी वक्त की थी, मन तो बस भरमा गया
वक्त ने करवट बदल ली, मन यूँ ही घबरा गया
वक्त का अहसान है कि घाव तो वो भर गया
किन्तु गहरी चोट थी, निशान बाकी रह गया
वक्त का रिश्ता जनम से, वक्त से व्यवहार है
वक्त मृत्यु का सुनिश्चित, वक्त जीवन सार है
वक्त का मारा हुआ जो, आदमी मजबूर है
नाम से राजा भले हो, जीव वह मजदूर है
वक्त के रहते सम्भल लो, लक्ष्य को तुम साध लो
कर नियोजित काम अपना,वक्त को ही बाँध लो
वक्त जो घडियाँ दिखाती,वह तो सबका एक है
किन्तु मुश्किल एक को और,दूसरे को नेक है
वक्त अच्छा है कभी तो, है कभी बिगडा़ हुआ
साथ पाया हम-सफ़र का, तो कभी झगडा़ हुआ
कल अनोखा दृष्य देखा, वक्त थक कर सो गया
जो कभी सँभव नहीँ था स्वप्न मेँ वह हो गया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें