शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

24. ‘दान’

पात्र देख कर दीजिए; द्रव्य-दक्षिणा-दान।
मन में पावन भाव हों; पास न हो अभिमान॥

पात्र पुत्र सा खोज कर; करें समर्पित द्रव्य।
गुण-क्षमता से हो भरा; सपने जिसके भव्य॥

जो खेतों को सींच दे; बढा़ सके व्यवसाय।
द्रव्य सौंप उस पुत्र को; हृदय सदा हरसाय॥

दिया दान तो क्या किया; किया नहीं अहसान।
मानवता के हवन में समिधा इसको जान॥

द्रव्यदान भी जब यहां चुका सके ना मोल।
धर पलडे़ पर दक्षिणा; लिया ग्यान  को तौल॥

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