भूल गए वर्षों के सुख को,
दुःख के कुछ दिन याद रहे।
मधुरिम स्मृतियां विस्मृत कर दी,
कड़वाहट ले साथ चले॥
क्या कारण है हम रखते हैं,
हर दम दुःख को साथ सदा।
जो पाया सब भूल गए,
जो ना पाया सो याद रहा॥
ऐसा ना हो इस जीवन में,
गलती ऐसी कर जाएं।
सुख को तो अनदेखा कर दें,
दुःख-स्मृतियां संजो जाएं॥
विश्लेषण जब लोग करेंगे,
एक सार होगा सबका।
जीवन भर थी यही शिकायत,
'रात मच्छर की – दिन मक्खी का'
रविवार, 25 अक्टूबर 2009
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009
12. चुनौती
मन के तम तक पहुंच सकेगी, दीप तुम्हारी, जब रश्मि।
सीमित हो, पर साथ लिए हो, तृप्ति-सुधा-रस धन-लक्ष्मी॥
बस छोटी सी यही चुनौती, कर लेना स्वीकार कभी।
दीवाली त्यौहार बने, सच्चे अर्थों में पूर्ण तभी॥
शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009
11. अविस्मरणीय माँ
भय से मुक्ति - अविरल शक्ति,
ईश्वर में विश्वास अपार|
स्वास्थ्य उक्तियाँ-ज्ञान सूक्तियां,
जिनमें जीवन भर का सार|
माँ से समता - किसमे क्षमता,
संस्कारों की पावन धार|
स्नेहसिक्त शुभचिंतक ममता,
भावः भरा अतुलित भंडार||
ईश्वर में विश्वास अपार|
स्वास्थ्य उक्तियाँ-ज्ञान सूक्तियां,
जिनमें जीवन भर का सार|
माँ से समता - किसमे क्षमता,
संस्कारों की पावन धार|
स्नेहसिक्त शुभचिंतक ममता,
भावः भरा अतुलित भंडार||
शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2009
10. हे राम........
गाँधी के जीवन से ;
दार्शनिकों ने सत्य को निकाला
पुस्तकों में दफ़नायाऔर सत्य को सत्य ही में
देश से बाहर कर दिया।
अहिंसा के प्रचार में
शिक्षकों ने बहुत नाम कमाया
छात्रों को अहिंसा का अर्थ बतलाया
इस दुर्लभ कृत्य का शब्दार्थ समझाया
नहीं समझे तो डराया-धमकाया
और अँत में डँडे के जोर से
अहिंसा का पाठ पढाया।
राजनेताओं ने गाँधीवाद अपनाया
वोटों के लिए गाँधी को खूब भुनाया
सत्याग्रह के नाम पर जब नहीं चली मनमानी
तो घोटालों के रास्ते देश को बेच खाया।
गाँधी ने अँतिम साँस लेकर कहा था ‘हे राम’
वही आ रहा है आम आदमी के काम
अब तो हर साँस में वह तिल-तिल कर मरता है
और मजबूरी में हर बार
‘ हे राम ’ कहता है॥
गाँधी व्यक्ति नहीं एक विचारधारा थे | हमने उस विचारधारा को छोड़ दिया किन्तु गाँधी नाम का भरपूर फायदा उठाया | गाँधी के मूल-भूत सिद्धांतों - 'सत्य, अहिंसा और राम-राज्य' का जो चित्र आज दिख रहा है उसी पर यह एक व्यंग्य है | गाँधी जयंती के अवसर पर, आज के सन्दर्भ में गाँधी की सार्थकता खोजने के प्रयासों की आवश्यकता है |
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