शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

10. हे राम........








गाँधी के जीवन से ;
दार्शनिकों ने सत्य को निकाला
पुस्तकों में दफ़नाया
और सत्य को सत्य ही में
देश से बाहर कर दिया।

अहिंसा के प्रचार में
शिक्षकों ने बहुत नाम कमाया
छात्रों को अहिंसा का अर्थ बतलाया
इस दुर्लभ कृत्य का शब्दार्थ समझाया
नहीं समझे तो डराया-धमकाया
और अँत में डँडे के जोर से
अहिंसा का पाठ पढाया।

राजनेताओं ने गाँधीवाद अपनाया
वोटों के लिए गाँधी को खूब भुनाया
सत्याग्रह के नाम पर जब नहीं चली मनमानी
तो घोटालों के रास्ते देश को बेच खाया।

गाँधी ने अँतिम साँस लेकर कहा था ‘हे राम’
वही आ रहा है आम आदमी के काम
अब तो हर साँस में वह तिल-तिल कर मरता है
और मजबूरी में हर बार
‘ हे राम ’ कहता है॥

गाँधी व्यक्ति नहीं एक विचारधारा थे | हमने उस विचारधारा को छोड़ दिया किन्तु गाँधी नाम का भरपूर फायदा उठाया | गाँधी के मूल-भूत सिद्धांतों - 'सत्य, अहिंसा और राम-राज्य' का जो चित्र आज दिख रहा है उसी पर यह एक व्यंग्य है | गाँधी जयंती के अवसर पर,  आज के सन्दर्भ में गाँधी की सार्थकता खोजने के प्रयासों की आवश्यकता है | 

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