रविवार, 25 अक्तूबर 2009

13. 'सुख – दुःख'


भूल गए वर्षों के सुख को,
दुःख के कुछ दिन याद रहे।
मधुरिम स्मृतियां विस्मृत कर दी,
कड़वाहट ले साथ चले॥

क्या कारण है हम रखते हैं,
हर दम दुःख को साथ सदा।
जो पाया सब भूल गए,
जो ना पाया सो याद रहा॥


ऐसा ना हो इस जीवन में,
गलती ऐसी कर जाएं।
सुख को तो अनदेखा कर दें,
दुःख-स्मृतियां संजो जाएं॥


विश्लेषण जब लोग करेंगे,
एक सार होगा सबका।
जीवन भर थी यही शिकायत,
'रात मच्छर की – दिन मक्खी का'

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