शनिवार, 30 जनवरी 2010

22. उडा़न




मुझे बेदख़ल क्या करेगा ज़माना

मेरा आशियां तो खुला आसमां है


1 टिप्पणी:

  1. ...सुना था जाने के बाद मिट जाती हैं यादें भी
    मैं मिटता कैसे, हर मोड़ पे मेरा ही निशां है...

    आप जब भी लिखते हैं, जिंदगी के किसी-ना-किसी पहलू को छू जाते हैं.
    :)

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