बुधवार, 23 सितंबर 2009

8. बीच सफ़र में


बीच सफ़र में, नदी किनारे, एक मुसाफ़िर आस लगाए।
नज़रें चिंतित, खोज रही हैं, इक केवट को, एक नाव को॥

सफ़र अभी ही शुरु हुआ था, नदिया में तूफ़ान आ गया।
खडा़ हुआ मजबूर किनारे, देख रहा उस पार गाँव को॥
बीच सफ़र में, नदी किनारे, एक मुसाफ़िर आस लगाए।
नज़रें चिंतित, खोज रही हैं, इक केवट को, एक नाव को॥

दिन का भी अवसान हो रहा,सूर्य अस्त हो रहा आस का।
ना जाने कब मिल पाएगा, रैन-बसेरा थके पांव को।
बीच सफ़र में, नदी किनारे, एक मुसाफ़िर आस लगाए।
नज़रें चिंतित, खोज रही हैं, इक केवट को, एक नाव को॥

जीवट वाला केवट होवे, नौका में होवे मजबूती।
लगन लगी हो,दृढ़ निश्चय हो,पहुंचेगा वह तभी ठांव को॥
बीच सफ़र में, नदी किनारे, एक मुसाफ़िर आस लगाए।
नज़रें चिंतित,खोज रही हैं, इक केवट को, एक नाव को॥

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