-= 1 =-
तुम्हारी नसीब में तुम्हारे;
मेरी नसीब में मेरे,
न देख सकता हूँ तुम्हारे;
न दिखा सकता हूँ अपने,
..............................सपने।
-= 2 =-
जब भी चाहूँ देख सकूँ; यह सुविधा नहीं है मुझको,
और चाहकर भी अनदेखा; करना मुश्किल उसको।
काट-छाँट भी नहीं है सँभव; है ऐसी मजबूरी,
हैं तो सपने; मेरे अपने; फिर यह कैसी दूरी॥
जीवन कई बार अजीब सी परिस्थितियों में ला खड़ा करता है जब विचित्र से मानसिक द्वन्द में हम उलझ जाते हैं | ऐसी ही मनस्थिति को बहुत सहज माध्यम से कहने का प्रयास है उपरोक्त पंक्तियाँ |
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