रविवार, 13 सितंबर 2009
4. मैं मेरा और मेरा मैं
मैं ही वादी - मैं प्रतिवादी
मैं ही न्यायाधीश यहां।
मन की अदालत- मन की गवाही
मन का ही विश्वास यहां॥
...............नहीं यहां पर संगी साथी,
...............नहीं सूझती राह यहां।
...............चिंता मेरी-चिंतन मेरा,
...............मेरा मुझको साथ यहां॥
प्रहरी बना मैं शीश महल का,
जागूं सारी रात यहां।
कंकर पत्थर ले हाथों में,
मौका तकते लोग यहां॥
...............सबके सुख की करूं कामना,
...............सुखी सभी हों लोग यहां।
...............सपना मेरा अपना है पर,
...............सपने लेना दोष यहां॥
सभी यहां थे संगी साथी,
सभी स्वजन और मित्र यहां।
काम पडा़ जब नज़र घुमाई,
सभी पराए लोग यहां॥
इस रचना को जब भी पढ़ता हूँ ; मुझे स्व. पु.ल.देशपांडे की ये प्रसिद्ध पंक्तियाँ बरबस ही याद आ जाती हैं 'कसा मी; कसा मी;कसा मी कसा मी, जसा मी तसा मी; असा मी; असा मी' |
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