रविवार, 20 सितंबर 2009

7. पाथेय

चार दिनों की कर तैयारी,

साथ चले थे जीवन-साथी।

करें अचंभा, अनजाने ही,

कब इतना पाथेय कर लिया॥


                              
पार कर रहे जीवन-गंगा,

जल का भरके पात्र धर लिया।

नाव खा रही है हिचकोले,

ये कैसा पाथेय कर लिया॥


छोटा सा तो सफ़र कर रहे,

सिर पर इतना भार धर लिया।

पग डग में करते हैं डगमग,

क्यों इतना पाथेय कर लिया॥

साधारणत: सफ़र में क्षुधापूर्ति के लिए साथ लिए गए खाद्यान्न को पाथेय कहा जाता है| यहाँ  जीवन के सफ़र में काम आ सकने  की कल्पना कर संचित की गई वस्तुओं को; व्यापक सन्दर्भ में पाथेय कहा गया है|

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