दुनिया की इस उहापोह में,
जीवन का दुर्लक्ष हुआ।
नून-तेल-लकडी़ में सीमित,
इस जीवन का लक्ष हुआ॥
आज सफलता की परिभाषा,
क्रय क्षमता तक सीमित है।
'और कमाओ - और चाहिए',
यही भावना जीवित है॥
इसी यज्ञ में दे आहूती,
पल-पल अपने हर पल की।
कौडी़ मोल लगा दी कीमत,
अपने दुर्लभ जीवन की॥
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