रविवार, 13 सितंबर 2009

1. जीवन की कीमत


दुनिया की इस उहापोह में,

जीवन का दुर्लक्ष हुआ।

नून-तेल-लकडी़ में सीमित,

इस जीवन का लक्ष हुआ॥


आज सफलता की परिभाषा,

क्रय क्षमता तक सीमित है।

'और कमाओ - और चाहिए',

यही भावना जीवित है॥



इसी यज्ञ में दे आहूती,

पल-पल अपने हर पल की।

कौडी़ मोल लगा दी कीमत,

अपने दुर्लभ जीवन की॥


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